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जुङें,जोङें और जोङते चलें

मेरी लेखनी :मेरा परिचय
मेरी लेखनी :मेरा परिचय
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कल सुबह की बात है ,बालकनी में खङी हो कॉफी की चुस्कियां ले ही रही थी ,तभी नजर सामने जा रही पङोसन की कामवाली पर पङी ,जिसका पति रोज उसे अपने रिक्शे से छोङने आया करता है,लाज की गठरी बनी पत्नी जब रिक्शे से उतरती तो पति का सीना गर्व से फूल जाता और अंदर जाती पत्नी को देख मुस्कुरा देता,जवाब में पत्नी ईधर-उधर देख हाथ हिला देती…..,आप ये ना समझें कि मुझे और कोई काम नहीं ,बस छिछोरों की तरह दुसरों की ताकाताकी किया करती हुं.दरअसल इन क्रियाकलापों से रोज ही मुहल्ले का कोई ना कोई सदस्य दो-चार अवश्य होता है….,और ये चर्चा का विषय इसलिए बनता है कि हर दो चार दिन बाद उक्तजोङे में घमासान युद्ध हुआ करता है,बात मारमपीटी से लेकर खुनखराबे तक पहुंच जाती है,पर जहां अगला धरती पर पङता है(पति या पत्नी),दुसरा उसकी सेवा में यूं लग जाता है मानो उसे उस स्थिति में किसी और ने पहुंचाया हो,क्षण भर पहले का गर्जन और किटकिटाहट करुण विलाप में बदल जाता है और बीचबचाव के लिए आए लोग सहानुभूति जता जता कर वापस हो जाते है,चार दिन बाद वही कहानी रिप्ले हो जाती है ,एक दिन उसके सूजे चेहरे को देखकर द्रवित होकर मैने कहा- ललन की मां कितना बेदर्द है तुम्हारा पति,कोई भला पत्नी को इस तरह जानवरों सा मारता है….,इसपर उसका जवाब सुनिए- ना दीदी ऐसे ना बोलो पति तो भगवान शंकर का रुप है,गुस्साना-मारना-पीटना अरे ये मर्द ना करे तो लोग उसे चूङियां ना पहना दें,ये सबतो औरतों का भाग-सोहाग (भाग्य-सुहाग) है…..अदभुत परिभाषा दी उसने मर्द की,उसकी कसौटी पर परखा तो अपने घर में तो कोई पुरूष ही नहीं नजर आया मुझे शर्म से भर गई मैं तो………पर उस औरत ने जो कहा उसे नकारा भी तो नहीं जा सकता,स्त्री-पुरूष के श्रेष्ठता की लङाई में निश्चित रूप से किसी एक को विजेता घोषित नहीं किया जा सकता,पलङा संतुलित भी होता है तो ठहराव आने की संभावना है,तो जरूरी है कम से कम उन्नीस-बीस का भी अंतर,… मुझे पता है उस कामवाली का विवाह कभी नहीं टूटेगा क्योंकि वो खुद को पति से कमतर मान चूकी है….इसी तरह मेरे पास अक्सर एक स्त्री आया करती है जिसकी शादी एक ऐसे पुरूष से करा दी गई थी जो स्त्री भार तो छोङिए खुद के दैनिक क्रियाकलापों में भी असमर्थ था….,दाद देनी होगी उस स्त्री की जिसने ना केवल जीवनपर्यन्त उसका शारीरिक,आर्थिक व मानसिक भार उठाया बल्कि खुद को भी सहेजे रख एक मिसाल कायम किया…जिसकी वजह से आज उसकी ठसक देखते बनती है. ….यही नहीं अभी जो मेरी कामवाली है उसका पति घर पर रहकर अपने चार बच्चों की देखभाल करता है और वो चौके-बरतन का काम कर गृहस्थी चलाती है.
कहने का मतलब कि वही जहां उपरोक्त उदाहरण स्त्री-पुरूष के आपसी समझ-सामंजस्य को बल देते है वही कई ऐसे उदाहरण भी देखने को मिलते है जहां विवाह को तलवार की धार पर रख दिया जाता है,कहना पङता है, आर्थिक स्वालंब ने कुछ स्त्रियों को इतना उच्छंश्रृंखल बना दिया है कि वो अपना आशियां समझौतों की नीव पर बसाना ही नहीं चाहती दोष उसका भी नहीं ,उसने कभी सहनशीलता के उस कसौटी पर खरा उतर कर दिखाया है जो आज उसका पैमाना बन चुके है… नए बदलावों ने उसकी दिशा और दशा ही नही बदली उसकी नारी सुलभ सोच को भी बदल दिया…उसे उङने को पंख मिले पर वो ये क्यों भूल गई कि इन्ही पंखों के अंदर मुश्किलों में उसे अपनों को समेट लेना भी है, मुझे लगता है कि उपरोक्त स्त्रियां और इनके जैसे अनगिनत लोग अनपढ और अल्पबुद्धि होते हुए भी जानतें है कि घर बचाए और बनाए रखने के क्या क्या उपाय है और तथाकथित पढे-लिखे और समझदार लोग समझौते-समझदारी-अहं का त्याग जैसे मुलमत्रों को भूलकर अपनी और जीवनसाथी की नही दो परिवारों की खुशियों मे घुन लगा देते है…….,क्या जोङे रखना या जुङकर रहना इतना मुश्किल है मुझे तो नही लगता……,एक इंसान अपने कार्यक्षेत्र में ,समाज में ,मित्रमंडली में,परिवार में सामंजस्य स्थापित कर सकता है पर एक ऐसे इंसान जिसने उसका साथ निभाने की कसमें खाई है,जो हर वक्त उसके पास उसके साथ है उससे निभाना इतना मुश्किल कैसे हो सकता है कि बात टूटकर ही खतम होती है… और क्या टूटने के बाद सबकुछ सामान्य हो जाता है क्या फिर से वो खुशी जिंदगी में वापस आ पाती है,मुझे तो लगता है कभी भी नहीं फिर क्यों ऐसा कर बैठता है आदमी…….. मेरी समझ से सबसे बङी वजह अहं दुसरी घटती सहनशीलता….एक सीधा सादा खुशनूमा जीवन जीना हमारा हक भी है और उस खुशी को बरकरार रखना कर्तव्य भी…उसके लिए अहं-ब्रह्मा-अस्मि के जाल से बाहर आएं,थोङा दूसरे के अनुरूप ढलें,दूसरा भी खुद-ब-खुद आपके अनुसार ढलने की कोशिश करेगा…,आखिर सामने वाला भी तो इंसान है …गल्तियां ऐसी ही करो जो तुम्हे सीखने का मौका दें ऐसी गल्तियां मत करो जो तुम्हे दुसरों के लिए सीखने का सबक बना दें..और दुसरी बात, कभी सुना है कि टूटा और ऊपर चला गया,टूटने का अंजाम नीचे गिरना ही होता है……तो क्यों वो लङाई लङे जिसे जीतकर भी हार हमारी ही हो, ……..
इसलिए जुङे,जोङें और जोङते चले के संदेश के साथ नववर्ष की अग्रिम बधाईयां ,आप सबों के लिए वर्ष विशिष्ट साबित हो……..

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